Class 10 Science Book

दृष्टि दोष और उनका सुधार

दृष्टि दोष और उनका सुधार

कुछ सामान्य दृष्टि दोष और उनके सुधार के तरीके इस प्रकार हैं:

निकट दृष्टि दोष या मायोपिया (Myopia or Nearsightedness)

  • परिभाषा: इस दोष में व्यक्ति निकट की वस्तुओं को स्पष्ट देख सकता है, लेकिन दूर की वस्तुओं को स्पष्ट नहीं देख पाता।
  • कारण: नेत्रगोलक का लंबा होना या नेत्र लेंस की फोकस दूरी का कम हो जाना (अधिक अभिसारी क्षमता)।
  • सुधार: इसे अवतल लेंस (concave lens) का उपयोग करके ठीक किया जा सकता है।

दीर्घ दृष्टि दोष या हाइपरमेट्रोपिया (Hypermetropia or Farsightedness)

  • परिभाषा: इस दोष में व्यक्ति दूर की वस्तुओं को स्पष्ट देख सकता है, लेकिन निकट की वस्तुओं को स्पष्ट नहीं देख पाता।
  • कारण: नेत्रगोलक का छोटा होना या नेत्र लेंस की फोकस दूरी का बढ़ जाना (कम अभिसारी क्षमता)।
  • सुधार: इसे उत्तल लेंस (convex lens) का उपयोग करके ठीक किया जा सकता है।

जरा-दूरदर्शिता (Presbyopia)

  • परिभाषा: यह दोष आमतौर पर उम्र बढ़ने के साथ होता है, जिसमें निकट और दूर दोनों वस्तुओं को देखने की क्षमता कम हो जाती है।
  • कारण: पक्षमभी पेशियों की लोच में कमी और नेत्र लेंस के लचीलेपन में कमी।
  • सुधार: इसे द्विफोकसी लेंस (bifocal lens) का उपयोग करके ठीक किया जा सकता है, जिसमें उत्तल और अवतल दोनों लेंस होते हैं।

मोतियाबिंद (Cataract)

  • परिभाषा: यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें नेत्र लेंस दूधिया और धुंधला (milky and cloudy) हो जाता है, जिससे दृष्टि आंशिक या पूर्ण रूप से बाधित होती है।
  • कारण: बढ़ती उम्र या कुछ चिकित्सा स्थितियाँ।
  • सुधार: इसे सर्जरी (surgery) द्वारा ठीक किया जाता है, जिसमें धुंधले लेंस को हटाकर एक कृत्रिम इंट्राओकुलर लेंस (intraocular lens) लगाया जाता है।
मानव नेत्र की संरचना

मानव नेत्र की संरचना

मानव नेत्र एक लगभग गोलाकार संरचना है जिसका व्यास लगभग 2.3 cm होता है। इसके विभिन्न भाग निम्नलिखित हैं:

  • कॉर्निया (Cornea): यह नेत्र के सामने का पारदर्शी (transparent) और उभरा हुआ भाग है। प्रकाश सबसे पहले इसी से होकर नेत्र में प्रवेश करता है। यह प्रकाश का अधिकांश अपवर्तन (refraction) करता है।
  • परितारिका या आइरिस (Iris): यह कॉर्निया के पीछे स्थित एक मांसपेशीय डायाफ्राम (muscular diaphragm) है जो पुतली के आकार को नियंत्रित करता है। यही आँखों को विशिष्ट रंग (काला, भूरा, नीला, आदि) प्रदान करता है।
  • पुतली (Pupil): यह परितारिका के केंद्र में स्थित एक छोटा छिद्र (small opening) है जिसके माध्यम से प्रकाश नेत्र में प्रवेश करता है। परितारिका इसकी सहायता से आने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है - अधिक प्रकाश में छोटी और कम प्रकाश में बड़ी।
  • नेत्र लेंस (Eye Lens): यह एक पारदर्शी, लचीला (flexible) और अभिसारी लेंस (converging lens) होता है जो रेशेदार जेली जैसे पदार्थ से बना होता है। यह पुतली के पीछे स्थित होता है और रेटिना पर वस्तुओं का वास्तविक और उल्टा प्रतिबिंब बनाता है।
  • पक्षमभी पेशियाँ (Ciliary Muscles): ये पेशियाँ नेत्र लेंस को पकड़े रखती हैं और इसकी फोकस दूरी (focal length) को समायोजित (adjust) करती हैं।
  • रेटिना (Retina): यह नेत्रगोलक के पीछे की आंतरिक सतह है जो एक प्रकाश-संवेदनशील पर्दा (light-sensitive screen) के रूप में कार्य करती है। इस पर वस्तु का वास्तविक और उल्टा प्रतिबिंब बनता है। रेटिना में दो प्रकार की प्रकाश-संवेदनशील कोशिकाएँ होती हैं:
    • शंकु (Cones): ये प्रकाश की तीव्रता (intensity) और रंग (color) का पता लगाती हैं।
    • छड़ (Rods): ये कम प्रकाश में देखने (रात की दृष्टि) के लिए संवेदनशील होती हैं।
  • प्रकाशिक तंत्रिकाएँ (Optic Nerves): ये तंत्रिकाएँ रेटिना पर बने प्रतिबिंब के विद्युत संकेतों को मस्तिष्क (brain) तक पहुँचाती हैं, जहाँ मस्तिष्क उन्हें सीधा और अर्थपूर्ण रूप में व्याख्या करता है।
  • जलीय द्रव (Aqueous Humour): यह कॉर्निया और नेत्र लेंस के बीच का स्थान होता है जिसमें एक नमकीन पारदर्शी द्रव भरा होता है।
  • काचाभ द्रव (Vitreous Humour): यह नेत्र लेंस और रेटिना के बीच का स्थान होता है जिसमें एक जेली जैसा पारदर्शी द्रव भरा होता है।
मानव नेत्र: क्या है?

मानव नेत्र क्या है?

मानव नेत्र प्रकृति द्वारा दिया गया एक अद्भुत और महत्वपूर्ण ज्ञानेंद्रिय (sense organ) है। यह हमें आसपास की दुनिया को देखने में मदद करता है। यह एक जटिल ऑप्टिकल उपकरण है जो प्रकाश को इकट्ठा करता है और उसे तंत्रिका आवेगों (nerve impulses) में बदलता है, जिन्हें मस्तिष्क व्याख्या करता है। सरल शब्दों में, यह हमें रंगों, आकारों और दूरियों को पहचानने में सक्षम बनाता है।